20 जून 2013

  •   जारी रखना फिर मुड कर देखो

    आख़िरकार हम कहाँ अलग थलग रह गये ?
     कोई पता ही नहीं चला | चिलचिलाती सूर्य की किरणों में भी हम सिमट कर रह जाते हैं| किसी के पूछने पर की आप इस कदर क्यों हैं| हमने कह दिया हम तो छोड़ गए तुम जारी रखना मुड कर न देखा करो| किसी दिन हमने छोड़ दिया था शायद हो सकता है, कोई परेशानी का सबब बना हो या अफरातफरी के इस भीड़ भरे माहौल में कहीं पिछड़ गये| आखिर रूख क्यों पलट जाती है? हर जगह !
    कहीं न कहीं परेशानी का माहौल बना रहता है| मौसम की तरह!
    मुझे लगता है, परेशानी का सबब यूँ ही नहीं बनता है| कोई न कोई हमारे इर्द-गिर्द उलझन देने या कष्ट के लिए किसी न किसी मतलब से स्वार्थ के फिराक में रहता है| और इस उलझन में में आगे बढना भी किसी पहाड़ को लांघने से कम नहीं लगता है| जारी रखना फिर मुड कर देखना जरूर!