आख़िरकार हम कहाँ अलग थलग रह गये ?
कोई पता ही नहीं चला | चिलचिलाती सूर्य
की किरणों में भी हम सिमट कर रह जाते हैं| किसी के पूछने पर की आप इस कदर
क्यों हैं| हमने कह दिया हम तो छोड़ गए तुम जारी रखना मुड कर न देखा करो|
किसी दिन हमने छोड़ दिया था शायद हो सकता है, कोई परेशानी का सबब बना हो या
अफरातफरी के इस भीड़ भरे माहौल में कहीं पिछड़ गये| आखिर रूख क्यों पलट जाती
है? हर जगह !
कहीं न कहीं परेशानी का माहौल बना रहता है| मौसम की तरह!
मुझे लगता है, परेशानी का सबब यूँ ही नहीं बनता है| कोई न कोई हमारे
इर्द-गिर्द उलझन देने या कष्ट के लिए किसी न किसी मतलब से स्वार्थ के फिराक
में रहता है| और इस उलझन में में आगे बढना भी किसी पहाड़ को लांघने से कम
नहीं लगता है| जारी रखना फिर मुड कर देखना जरूर!