लगाव
अनुभूतियों के विस्मृत-अविस्मृत पल जो कि अबाध गतिविधियों के साथ अग्रसर होता है |
9 जून 2012
आस
कैलाश पर्वत |
बादलों के घनेरे साये
कहीं मन सहम जाए
उजले गर्मी में मन
कहीं सहम ठहर जाए
किसी छोर से बुलावा
आज भी हो, दिल की
कसक यूँ ही जगी रहे ।
अस्तित्व
अस्तित्व जहाँ कायम रहे
सोचता हूँ , खोजता हूँ
सोये हुए अस्मिता को
जाग जाये
जहाँ से खोकर हम
पकड़ना चाहते हैं
नयी अस्मिता ।
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