रात अकेला
न जाने किताबें
किस ओर हैं
हवाएं बादलों के
संग न जाने धूप
हवाएं बादलों के
संग न जाने धूप
किस ओर हैं।
अँधेरी रात
बादलों का साया
बाकि है
आंधियाँ चले
बर्फ के संग
बादलों के संग
बादल घनेरे
बिन बरसात
मंजिल कहाँ
नाचते पंछी
बरसात संग
उमड़ते मौसम संग
धूप खिलती
रात के बाद
बरसात के बाद
आइना टूट
सा जाता है
जैसे ही बिखरते
नींद न आये
शोर मचाये
राहगीर
बसंत
आगमन
जलध धरा हरा ।
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