9 दिसंबर 2010

स्थिति बयान नहीं कर सकता

१.स्थिति

इंसान बयान नहीं करता
स्थिति वास्तविकता को
बंद रख खोखलेपन के
सहारे जीता उडाता
पंछी बन हर वक्त

२.स्थिति

फिर वही धुंध आगाज फिर
शरद ऋतु का निपटता हमेशा
फिर वही शरद ऋतु लगे
जैसे परीक्षा की घड़ी
जो कल था वैसी स्थिति
में आजकल आईने के
रूप में दिखता हर पल


मुकेश नेगी, १२-०४-२०११.

उड़ान

उड़ान हर इन्सान उडाता जा रहा है पंछियों की तरह आसमान को छूने के फ़िराक में कब आएगा हमारा वो घडी जिसमे हमें भी मौका मिले आसमान को छूने का म..."

स्थिरता

"लगाव आखिर यह कैसा लगाव पल भर में मिलना क्षण भर में बिछुड़ना आधुनिकता का दौर अपनों से दूर होना एक सुख को त्याग दूसरे सुख की तला..."

लगाव

लगाव
आखिर यह
कैसा लगाव

पल भर में 
मिलाना क्षण भर में
बिछुड़ना 

आधुनिकता की डोर
अपनों से दूर होना
एक सुख को त्याग
दूसरे सुख की तलाश में
ढूँढता फिरता

 नाव 
जो चक्र काटता 
समुद्र के चारों  ओर
पल  प्रतिपल ।

ठहराव

ठहराव रुकी-रुकी सी जीवन की यह घड़ी इंतजार की आखिर कहाँ तक चलेगा यह सफ़र न कोई आसरा न कोई ठिकाना उजाला सा जीवन धुंधला होता जाता है फिर भी हिम्मत जुटाने की कोशिश में रहता है इन्सान यही है जीने की कला

उडान

उडान हर इन्सान उड़ता जा रहा है पंछियों की तरह आसमान को छूने के फ़िराक कब आएगा हमारा वो गढ़ी जिसमे हमें भी मौका मिले आसमान को छूने का मौका बस इसी आस में की कभी तो दिखेगी यह उड़ानों का सफ़र

दायरा

दायरा आखिर क्यों टूटता चैन कितना अजीब लगता है जिंदगी का हर पहलू क्यों टूटता है दायरा कितना मुश्किल होता है जिंदगी की डोर बंधना हर पल इसी आस में रहता है मानव कितनी अजीब सी लगती है जिंदगी की यह डोर

ख्वाब

ख्वाब आते हैं मन में खवाब गुथियों में समाँ जाते हैं ओर करते हैं हलचल धुंध सा फैला है आँखों के सामने बादलों के घेरे में बस इसी आस में कब सुलझेगी ये अजब पहेली