29 जून 2011

सोचता हूँ

मैं सोचता हूँ  कि
ख्यालों में सोचने से
यूँ ही दिन निकल जाते हैं
कभी बारिश की फुआरों तो 
कभी हवाओं के झोंकों से
इसी तरह ढेर सारे
प्रश्नों को अपने आप
से पूछते हुये कोई    
उतर नहीं निकलते |
  


28 जून 2011

परम्परायें

बदलते परिवेश के
लगातार परम्पराओं के
आँगन में

मौसम  कि तरह बदलते
परम्पराओं  के साथ
चलाना है जहाँ होता है नित
सदाचार का पालन

अशिक्षा ,अंधविश्वास
को छोड़ पालन करता
परम्पराओं का जहां सदाचार है |

21 जून 2011

तलाश

आधी रात लगे अमावस्या
सी कि कब मिलेगी  निजात
निमग्न करता तलाश

शब्दों के फेर में फंसता
घुटता एक के बाद एक
शब्द फिर होता सूर्योदय
ओर करता सुख का अनुभव |   

3 जून 2011

फिर लौटना पड़ता है

फिर लौटना पड़ता है

उसी पड़ाव में
जिसे छोड़ा है

अमूमन
असलियत
ओर झूठ
के
पड़ावों से

अक्षरों को
पिरोकर
कविताओं के
अंजुमन में

जहाँ चलती है
भाषा हवाओं की |