12 जून 2012

सन्देह न हो

 सन्देह के जोड़ में,
 ताकते रह जाते
 हर समय कहीं
 ठिकानों के साथ में
 कई घुमावदार पंक्तिओं में
 मन सहम जाए
 इन सन्देह के घेरों में
 जहाँ सन्देह न हो |


बातों ही बातों में


बातों-बातों में बीत जाते हैं
समय और हम खोजते हैं
उनमें बातों को, जहाँ हम
तन्हाई महसूस करते हैं

इन पलों में हम
समेटना चाहते हैं
अपने आप को,
जहाँ तन्हाई हमसे दूर
भाग जाये,
फिर से इक नई उमंग
लौट आये इन तनहाइयों
में हर समय,

यादों के इन तनहाइयों में
हम भी कहीं न कहीं कतार
में नजर आये ऐसा आस
मन में संजो रखता हूँ|

अकेला

अकेला निराश

बातें जब दो बैठते हैं

तीसरा जब मिल जाता हैं

चौथा जब बातों में शामिल हो जाता है

जब बातों का सिलसिला जारी रहता है

तभी हंसी छलक सी जाती है बातों में

बातों ही बातों में न जाने क्या-क्या बात होती है।