24 अक्तूबर 2011

अंतिम पड़ाव

हर दिन एक सवेरा है 
अंतिम पड़ाव है 
न जाने किस मोड से गुजरे 
वो लम्हें जिसका इंतजार अभी बाकि  है
अंतिम पड़ाव में फिर भी एक आस है
जो एक जागता सवेरा है 
आज कुछ अलग है 
लगता है कि यही अंतिम पड़ाव है
जो कि इस भीड़ में दिखाई देता है 
जहाँ हर कोई शौक से जीता है
वहीँ हमें हर बार मुश्किल में जीना पड़ता है 
सोचता हूँ कहीं कोई अंतिम पड़ाव है