30 सितंबर 2012

पूछते हुये स्वयं से
अनेकों प्रश्न सोचता हूँ
ढूंढ कर भी नहीं दिखते हैं
शहर के माहौल में
ढेरों सड़कों के किनारे
कतारबद्ध पंक्तियों में
कल  रात जहाँ था
समझ कर आज भी वहीँ हूँ
इस हलचल भरी भीड़ में
कहीं कोई मेरा हमसफर
साथ दे तो ही सही
पूछ रहा हूँ स्वयं से
जेहन में कहीं कोई रूकावट
न पनप जाये इस भीडभाड
में कहीं किसी दरख्तों के साये
ढूंढ रहा हूँ एक प्रश्न


29 सितंबर 2012

हृदय

समेट लेता है हृदय
जहाँ जज्बात बेखुदी
में सोते हैं
ओर खींच लेता है धुआँ
इस तरह मदहोशी में
हर पल का अपना
स्वाद जकड़ लेता है
तनहाइयों में
छूट जाये तो ही
तडपता है
ये दिल के रिश्ते भी
अजीब हुआ करते हैं |

13 सितंबर 2012

राजभाषा हिन्दी


हिन्दी है जिसका
हृदय बातों में
पहचान जिसे छिपाया
नहीं जा सकता है
जहाँ आस टिका रहता है
मंजिलों के इस
पार ओर उस पार
जहाँ छवि न ही
अलगाव के पहचान
में रहते हैं
परवर्तन सब कुछ
पलट देता है
भाषा बनकर बोलियों
से राजभाषा का दर्जा
स्थापित कर लिया है|

12 सितंबर 2012

इंतजार

 इंतजार जैसा घडी
 की सुई चक्र दर चक्र
 घूमता है

 इंतजार मिलन की
 घडी के लिये
 झूलता झूला इधर
 -उधर एक छोर से दूसरे
 बहुत कठिन है

 इंतजार
 की घडी, पल-पल
 झूलता रहता है ।

उलझन में पहुँचाने

अगर न हो साथ हर बात की

कीमत चुकानी पड़ती है

इस कदर क्यों उदास रहते हैं

कहीं किसी सोच में डूबे तो नहीं हैं

धूप-छाँव तो नहीं

जहाँ सोच बदल जाता है

बात-बात पर रूठना ओर

कोई हल नहीं निकल पाना

बड़ा अजीब सा लगता है

इस कदर बातों में उलझन

छा जाये तो हर छवि अलग सी दिखती है

अक्सर सोचने पे मजबूर होना पड़ता है

निराश होकर

बातों पे न हो दम तो ही जान पड़ता है

हर घडी जिसमे पहचान की कमी हो

फर्क बस इतना है जब उदासी की छवि

झलक जाती है|

9 सितंबर 2012

बदलने की कोशिश

आँख चुराकर

जब कोई बात करता है

टपकते हैं बूँदें

जहाँ जलन अँधेरे की ओर

धकेलने की कोशिश में रहते हैं

स्वयं को बदलने के लिये

रुख बदलना पड़ता है

इन तूफानों से बार-बार

खेलकर जीना पड़ता है|

7 सितंबर 2012

सोज

 मुझ में, तुझ में
 फासला इतना
 न रहे कि सोच
 न बनकर सोज
 बना रहे,

 इस बदलते दौर में
 सोज एक शौक बने
 कमोवेश किसी के
चाह में सहज सफ़र
चलता रहे ।