30 सितंबर 2012

पूछते हुये स्वयं से
अनेकों प्रश्न सोचता हूँ
ढूंढ कर भी नहीं दिखते हैं
शहर के माहौल में
ढेरों सड़कों के किनारे
कतारबद्ध पंक्तियों में
कल  रात जहाँ था
समझ कर आज भी वहीँ हूँ
इस हलचल भरी भीड़ में
कहीं कोई मेरा हमसफर
साथ दे तो ही सही
पूछ रहा हूँ स्वयं से
जेहन में कहीं कोई रूकावट
न पनप जाये इस भीडभाड
में कहीं किसी दरख्तों के साये
ढूंढ रहा हूँ एक प्रश्न