23 सितंबर 2011

कशमकश

बड़ी मुदतों के बाद
कशमकश जगाता
मन की गहराइयों में
आदर्श की कसौटी
को तराशता जहाँ है
स्वर्ग सा नजारा 
निर्धनता, अशिक्षा,
बेरोजगारी के स्वरूप 
को निहारता,
जहाँ व्याप्त अभिशाप,
पाप कुंठायें
और रूढ़ियाँ मचाता है 
हलचल  सा हृदय
 

3 सितंबर 2011

बारिशों में

सिमट से जाते हैं 
हम इस व्यस्तता
 के दौर से,  हम बारिश
में रुक से जाते हैं  |
 
 













1 सितंबर 2011

अपरिचित रह जाते हैं


हम अपरिचित से रह जाते
हर  समय और गिनते हैं
इंतज़ार  की गढ़ियों को
जिसमे  सिमट जाते हैं
अनेकों  पल परिचितों
एवम अपरिचितों  के साथ
चलते चलते और
सिमट जाते हैं तलाश में
नये  सवेरा की ओर
न जाने अब की गढ़ी
में  कौन सा मंजर होगा
इस  इंतज़ार की गढ़ी में
और रह जाते हैं अपरिचित