9 अक्तूबर 2011

समायोजित

हम आज भी वहीँ खड़े हैं
जहाँ छोड़ चले थे 
कहीं कोई रोक देता है
तो कहीं हम हट जाते हैं

आज कुछ अलग है 
कल को देखकर 
कोई तोड़ देता है
तो कोई छोड़ देता है
पलक झपकने के लिए |

 

इस तरह भी

हम भूल  जाते हैं
 इस तरह से फिर भी
उन्हीं में खो से जाते है
उब से जाते हैं माहौल
के साथ इन परिवर्तनों में