7 जून 2012

रात के बाद

 रात अकेला 
 न जाने किताबें 
 किस ओर हैं

 हवाएं बादलों के
 संग न जाने धूप 
 किस ओर हैं। 

 अँधेरी रात 
 बादलों का साया 
 बाकि है 

 आंधियाँ चले 
 बर्फ के संग
 बादलों के संग 

 बादल घनेरे 
 बिन बरसात 
 मंजिल कहाँ

 नाचते  पंछी 
 बरसात संग 
 उमड़ते मौसम संग

 धूप  खिलती  
 रात के बाद
 बरसात के बाद

 आइना टूट
 सा जाता  है
 जैसे ही बिखरते 
 
 नींद न आये
 शोर मचाये
 राहगीर

 बसंत  
 आगमन 
 जलध धरा हरा । 

  
   

तलाश में यादें

                          
 जब कभी भी देखा है
 तलाश  में यादों 
 के संग यूँ ही
 जाते हैं अहसास 
 के साथ कहीं 
 रुकावटें तो कहीं 
 हवाएं चलती है
 सुदूर  क्षेत्रों में
 कहीं भोर होते
 अस्त  होते
 जब से देखा है 
 नम आँखों से
 ओझल  होते 
 कहीं  रोते
 कभी मुस्कुराते
 कहीं हँसते 
 कभी घूरते 
 कहीं उलझे
 कभी बदलते 
 कहीं बोझिल
 दिखाई देते हैं।