31 अगस्त 2011

स्वप्नलोक

गहरी नींद में
विचारों का बोझ बुनता
 तरह-तरह के  स्वप्न

कभी मन को कचोटता
कभी  पैदा करता उल्लास
विचारों के  गलियारों में


भवन निर्माण की तरह 
गुजरता समय, टूट सा जाता
 भूकंप की तरह स्वप्न

कभी हताश सा रह जाता स्वप्न
 ऐसा है अद्यतन मानवता का |



 

19 अगस्त 2011

नया दौर है

इस नये दौर में
बस समझना बाकि
रह गया है

अहसास  नये दौर का
कि  किस तरह कदम
आगे बढे

अहसास  इस बात
का कि अकेलेपन की
जगह अपनापन

कहीं न कहीं मौजूद हो
एक नया दौर है |










13 अगस्त 2011

दिनचर्या

  पढ़ते देखते
दिनचर्या से
  पढ़ते पढ़ते 
हम लिखना 
ही भूल गए

आलसी बन कर
  भी हम थक
से जाते हैं
इन  रूहाइयों से
  दिनचर्या से
 ओर फिर भूल
  से जाते हैं |