2 अक्तूबर 2011

हालात

हालात न जाने क्यूँ
मजबूर  कर देता 
विकट परिस्थितियों में

बढते  हुये कदम को
पीछे हटाना पडता है
कोई ठिकाना न होता 


हम हो जाते हैं हालात 
से मजबूर इस कधर |

अहसास

अहसास इस बात का
कहना चाहता हूँ
अपना कहीं कोई
मिले कह नहीं पाता

कहना चाहता हूँ
जो समझ पाये मुझे
कहूँगा जब कोई
अपना समझे
सिर्फ अहसास
इस बात का कि
कोई समझ पाये |

अपलक दृश्य

सोचता हूँ कदम बढ़ाऊ
सामना करना पडता है
अपलक दृश्यों का
कंटीली  राहों पर
हमेशा अदृश्य संदेशों
के सहारे फिर हट
जाता है बढता कदम