23 जुलाई 2011

यादों के साये में

यादों के साये
हम संजोकर रखते हैं यादों
को जीते हैं हम यादों के साये

तन्हाईयों में यादें ही रहती है
हमारे साथ झुरमुटों की तरह

यादें बचपन, स्कूल, महफिलों
और मित्रों की जिसे हर समय
निहारते हैं आहिने के रूप में

करवटें बदलते हुए हर समय
और इसी तरह बीत जाते हैं
जीवन के लम्हे

मुकेश नेगी, १४-०५-२०११.