30 सितंबर 2012

पूछते हुये स्वयं से
अनेकों प्रश्न सोचता हूँ
ढूंढ कर भी नहीं दिखते हैं
शहर के माहौल में
ढेरों सड़कों के किनारे
कतारबद्ध पंक्तियों में
कल  रात जहाँ था
समझ कर आज भी वहीँ हूँ
इस हलचल भरी भीड़ में
कहीं कोई मेरा हमसफर
साथ दे तो ही सही
पूछ रहा हूँ स्वयं से
जेहन में कहीं कोई रूकावट
न पनप जाये इस भीडभाड
में कहीं किसी दरख्तों के साये
ढूंढ रहा हूँ एक प्रश्न


29 सितंबर 2012

हृदय

समेट लेता है हृदय
जहाँ जज्बात बेखुदी
में सोते हैं
ओर खींच लेता है धुआँ
इस तरह मदहोशी में
हर पल का अपना
स्वाद जकड़ लेता है
तनहाइयों में
छूट जाये तो ही
तडपता है
ये दिल के रिश्ते भी
अजीब हुआ करते हैं |

13 सितंबर 2012

राजभाषा हिन्दी


हिन्दी है जिसका
हृदय बातों में
पहचान जिसे छिपाया
नहीं जा सकता है
जहाँ आस टिका रहता है
मंजिलों के इस
पार ओर उस पार
जहाँ छवि न ही
अलगाव के पहचान
में रहते हैं
परवर्तन सब कुछ
पलट देता है
भाषा बनकर बोलियों
से राजभाषा का दर्जा
स्थापित कर लिया है|

12 सितंबर 2012

इंतजार

 इंतजार जैसा घडी
 की सुई चक्र दर चक्र
 घूमता है

 इंतजार मिलन की
 घडी के लिये
 झूलता झूला इधर
 -उधर एक छोर से दूसरे
 बहुत कठिन है

 इंतजार
 की घडी, पल-पल
 झूलता रहता है ।

उलझन में पहुँचाने

अगर न हो साथ हर बात की

कीमत चुकानी पड़ती है

इस कदर क्यों उदास रहते हैं

कहीं किसी सोच में डूबे तो नहीं हैं

धूप-छाँव तो नहीं

जहाँ सोच बदल जाता है

बात-बात पर रूठना ओर

कोई हल नहीं निकल पाना

बड़ा अजीब सा लगता है

इस कदर बातों में उलझन

छा जाये तो हर छवि अलग सी दिखती है

अक्सर सोचने पे मजबूर होना पड़ता है

निराश होकर

बातों पे न हो दम तो ही जान पड़ता है

हर घडी जिसमे पहचान की कमी हो

फर्क बस इतना है जब उदासी की छवि

झलक जाती है|

9 सितंबर 2012

बदलने की कोशिश

आँख चुराकर

जब कोई बात करता है

टपकते हैं बूँदें

जहाँ जलन अँधेरे की ओर

धकेलने की कोशिश में रहते हैं

स्वयं को बदलने के लिये

रुख बदलना पड़ता है

इन तूफानों से बार-बार

खेलकर जीना पड़ता है|

7 सितंबर 2012

सोज

 मुझ में, तुझ में
 फासला इतना
 न रहे कि सोच
 न बनकर सोज
 बना रहे,

 इस बदलते दौर में
 सोज एक शौक बने
 कमोवेश किसी के
चाह में सहज सफ़र
चलता रहे ।

30 अगस्त 2012

ख़ामोशी

  मुश्किल में सफ़र
  रात की ख़ामोशी और
  दिन के उजियारे में
  वीरान से जिन्दगी का सफ़र
  दिल की हंसी, मन के साथ
  मन की बात दिल के साथ |

28 अगस्त 2012

उजाले का अहसास

उजाले में भी अँधेरे
का अहसास होने लगा है
जहाँ परम्परायें करते हैं
रुढियों का पालन
सदियों पुरानी सभ्यता
पर जीने लगा है मानव
कैसे मिटेगा अँधियारा
कब होगा उजाले का दीदार
निर्दोषों को कर विवश
चिथड़ों के साये होता
रहा है स्वार्थ का पालन
कब तक चलेगा
उजाले में अंधेरों का स्वार्थ
नियति के नियमों को रखकर
ताक पर जीने को विवश है
बनावटी परिवेश में।

एक ख्वाब

जिन्दगी एक ख्वाबों की हकीकत है,
अगर न हो वैर तो तक़दीर संवर जाती है,
वक्त साथ दे, तो सब कुछ बदल जाता है |

दबिश

आसान लगता है
पैरों के तले दबाना
लेकिन वो क्या जाने
घुटन क्या चीज है
कभी महसूस करके देखो
कि घुटन का स्वाद कैसा है
चींटी का खरोंच भी काफी है
विशालकाय जीवनी काफी को
मूर्छित करने के लिये
आसान लगता है पैरों तले दबाना |

27 अगस्त 2012

जिन्दगी के कलेवर

हम गलतियों से

इतने पिछड़ जाते हैं

कि दोबारा उसी राह से

दूर जाने का मन करता है

बार - बार जिंदगी की भागदौड़

में कहीं न कहीं फिसल जाते हैं

कभी दूसरों की गलतियों के कारण

कभी स्वयं के बनाये हुए कलेवरों में

जब कभी भी जिन्दगी के भागडोर व

आपाधापी नुकसान भुगतना पड़ता है।

26 अगस्त 2012

परिस्थिति


 संजो  रखता हूँ
 तुम्हारी यादों को
 किसी भी परिस्थिति

आज जो अलग है
उस दौर से गुजर
रहा हूँ

 शायद, कोई दोस्त है
 तुम्हारा  जिसे छोड़
 नहीं पा रहा हूँ

 परिस्थितियों के
 दौर से गुजर रहा हूँ
 जिन्दगी के थपेड़े

 ऐसे ही हैं दौर जो हमें
 तोड़ देते हैं हरदम
 किसी के सहारे |

25 अगस्त 2012

दिशाओं की ओर


  थमते हुए राह में जब हम राह थामते हैं,
  थमते हुई जिंदगी में सफर चलता रहे, 

  राह में रुकावटें कहीं दिशा मोड़ दे,
  परख बना रहे परीक्षा की दिलोदिमाग में, 

  जिंदगी की राह यूँ ही चलती रहे, 
 जहाँ दिल बिना रुके बसा रहे |

रुढ़िवादी धरा

रुढ़िवादी धरा
आदर्श की कसौटी
तराशती धरा जहाँ हो
स्वर्ग सा नजारा
चारों दिशायें

हतोत्साहित दृश्य
फिर कसक जगाती
मेरे मन में

जहाँ बेरोजगारी से
त्रस्त तृष्णा प्रकृति के
स्वरूप को पलटते

कब सुधरेगी धरा
की सभ्यता
जहाँ व्याप्त अभिशाप, पाप,
कुंठाएं और रूढ़ियाँ
मचाते हृदय में हलचल |

बिसरे पल

इन हरी भरी यादों में कसक तराशता है, फिर से माहौल बने और हम उन में संजीदगी से नये तरीके से रूबरू हो सके, सुदूर आगंतुक की तलाश में बिसरे यादों के संग इन्तजार की घडी समाप्त हो |
 इन हरी भरी यादों में
 कसक तराशता है,
 फिर से माहौल बने
 और हम उन में
 संजीदगी से नये
 तरीके से रूबरू हो सके,
 सुदूर आगंतुक की तलाश में
 बिसरे यादों के संग
 ख़त्म  न हो हरियाली
 इन्तजार की घडी समाप्त हो |

22 अगस्त 2012

जब कभी भी नुकसान होता है

हम गलतियों से 
इतने पिछड़ जाते हैं
कि दोबारा उसी राह से
दूर जाने का मन करता है
बार बार जिंदगी की भागदौड़
में कहीं न कहीं फिसल जाते हैं
कभी दूसरों की गलतियों के कारण
कभी स्वयं के बनाये हुए कलेवरों में
जब कभी भी जिन्दगी के भागडोर व
आपाधापी नुकसान भुगतना पड़ता है।

16 अगस्त 2012

चलने के लिए

जहाँ से शुरू होते हैं
वहीँ पे रुक जाते हैं
चलने के लिए

किसी के आने जाने के
बहाने सोच में फस जाते हैं
परछाइयाँ भी रोक देते हैं
चलने के लिए । 

14 अगस्त 2012

महक खिलते हैं

                                                                          ब्रह्मकमल
   पर्वत शिखर पे
महकते हुए 
  जहाँ खिलते हैं
ब्रह्मकमल
 शीर्ष पे महक 
     शुशोभित होते हैं
       मौसम के आगाज
         सहित सभी के मन
  बहल जाते हैं। 

13 अगस्त 2012

नियमित

बात इतनी  सी जहाँ से शुरू होते हैं,
फिर बात इतनी अन्त से शुरू करते है।

12 अगस्त 2012

जब भी कोई दिनचर्या में हमें देखता है,
तनहाइयों में शान्त से रूह कांप उठते हैं|

पल-पल यादें अक्सर स्वभाव सताने लगती है,
गर कोई साथ दे तो मिठास उभर आता है|

कई बार यादें साथ होने का भ्रम पैदा करते हैं,
गर यादों में उल्लास व उत्साह हो अच्छा लगता है|

10 अगस्त 2012

आईना

कितना सुकूँ मिलता है
जब कोई आईना आवाज देता है
जहाँ आईना आवाज के पहचान दिलाते हैं
और मदहोशी में कहीं खो जाते हैं|

7 अगस्त 2012

नासमझ बनकर

अक्सर हम नासमझ
बनकर बातों- बातों में
गलती कर बैठते हैं

समझ कर भी
नासमझी का नुक्सान
भुगतना पड़ता है

दोस्ती में भूल से
जाते हैं बातों का रस
जिसका खामियाजा
भुगतना सबसे कठिन है

उठते-बैठते जुड़ते हुए
बातों के मोल से घोल में
अक्सर पिछड़ जाते हैं   ।        

3 अगस्त 2012

राहों में

  नज़रों और नए राहों
  के मध्य बात बन जाए
  इन राहों पे
  जहाँ से हम बढ़कर
  चलें उन राहों पे
  इन शान्त माहौल
  के रुखों से सिमट
  कर न रह जाए।    

आयाम

 कितना सघन
 कितना सुखद
 उत्साहित, एकाग्रचित
 सा लगता है

 वहीँ से गुजरना
 अलग थलग से
 जहाँ छोड़कर एक
 नये सफ़र में

 इस सफ़र में
 हर समय कुछ
 रूह और आयाम
 सहित  मंजिलों के साथ।      

31 जुलाई 2012

बारिशों के अफ़साने

  बीते हुए  यादों में
 सामना  होते हुए
 हर समय रिमझिम
 बारिशों  के अफ़साने
 महकते  हुए
 चहलकदमी में
 कुछ  जुड़ते  हुए
 कहीं कुछ हटते हुए
 मोनसून के  रंगरूप
 लिये बारिशों के
 अफ़साने चहलकदमी के
 संग रंगों राग
 भी हो मौसम के अफ़साने ।

22 जून 2012

बारिश

रास्ते में कुछ आने का सूचक
चलो एक नये दिशा की ओर
कि आने वाला है बरसाती रंग
पड़ने लगे हैं छिटपुट बूंदें
चले एक नई दिशा की ओर |

कसक

 कसक दिल की जगी रहे 
 आस संजोये हुए मन के झमेलों 
 से दूर और चलते रहे जिन्दगी की
 भागदौड बरसात में भी बिन मौसमों
 के रूख और हम जियें जिसमें संजीदगी |

अस्तित्व

संलिप्त होते हुए
विलुप्त सा नजारा
झलकता है
दिन, रात खोई हुई
अस्मिता उजाले की ओर
पहल के लिये
जहाँ सोया हुआ
अस्मिता जगा जाये
ओर बर्बस बढ़ चले
शून्य के आगे अस्तित्व
स्वछन्द दिशाओं में
उजले से बिना रुके|

21 जून 2012

प्रभात

हर पहलू जहाँ महक
चेहक कर कदमों से
खुलते हैं ताजगी के
राग ठनक कर प्रभात
के संग सुप्रभात !

शुरू होता है दिन का
आगाज जहाँ से शुरू
होते हैं व्यस्तता के
दौर, पनपते हैं नये
सवाल और खोजते हैं

कागज के पन्ने कलम
से सिमट कर रह जाते हैं
और शुरू हो जाता है
छंदों के उद्वेलित मनोभाव

अभिव्यक्ति के छलावे
सिमट कर रह जाते है
चंद शब्दों की परिभाषा |

20 जून 2012

परिवेश

समझकर जब हम
सोचते है कि नया
बहाना कहीं हो

हर समय नये पहल,
रूहों के इन परिवेश
से विरल ही अनवरत

हम ताकते रह जाते
जहाँ से छन्द मुड जाते
विचारों के दिशाओं

कहीं बनते बिगड़ते
सफर के झंझावतों से
बढ़ निकलने के लिये

जहाँ स्तब्द्ध बना रहे
नैया पे मनमाफिक
शान्त रहे विचारों के
कलेवर में चलकर |

19 जून 2012

व्यंग्

दिन भर घूमकर जब कोई लौटता,
और एक के बाद एक व्यंग करता|

लगता है वो भी व्यंग सुनकर लौटता,
बरबस चोट खाये हुए पलकें झपक कर हो|

अरे मित्रों

अरे मित्रों !
क्यूँ इतने उदास हो
हाले दिल तो बयाँ कीजिए

हम भी आपके
हाले राह पे खड़े हैं
इंतजार काफी हुआ है

जरा हमें भी गौर फरमाइये
इन मदमस्त कंटीले राहगीर
के तले जहाँ सुकून हो, हाले
दिल बयाँ करने का |

नोकजोंक

एक झूठ जो कभी
यहाँ-वहां फिरता है
चलता, फिरता जो
झुकता नहीं कभी
झूठ की आन लिए
फिरता है


न जाने आज यहाँ हो
या वहां जिसका कार्य ही झठ
बतलाना यहाँ वहां
फरेबी में घूमता
जिसका कार्य ही
नोंक्जोंक करना रहता
हर समय


आज क्या दिखेगा
इसी में सबकुछ बोलता
नहीं लगता मंशा कुछ
कर गुजरने की


जो हमेशा दूसरों
को दबाने की मंशा में
घूमता, फिरता जिसका
कार्य ही झूठा हो।

दौड

दौड़ जहाँ पाने
खाने के लिए
इन कंटीले राहों
की ओर


होड़ में मकाम,
मंजिलें दौड़ न
होकर हासिल हो


इस सफ़र में
लग  जाते हैं
कंटीले लग जाए


दौड़ने की ललक
संजो कर कहीं
पथिक फिसल न जाए


होश न खोये
पथिक जोश में
खाने, दौड़ने के लिए 
चलता रहे । 

16 जून 2012

संयम के पल

जहाँ से चले हैं
जहाँ आकर रुके हैं
जहाँ सारा जहाँ
चलने की दिशा है
कितना सुखद
कितना हसीन
कितने सफल

होते हैं ख्वाहिश
चाहने के लिये
कहीं किसी डगर
को लिये

चलने के लिये
फिर भी मन
उत्साह से भरा
कभी कभी इस
तरह भी

किरणों के संग
फिर से उमंग भरे
और सुखद पहलू
दिशाओं में संजो रखना |

13 जून 2012

जीवनशैली

मेरा मानना है
कि सहम जाना
बहुत मुश्किल में पडना
क्यों होता है ?
जब राह कठिन
लगते हैं
ख़ामोशी क्यों उठा
ले जाती है ?
जिसका  कोई
मतलब हो
हवा क्यों रुक
सी जाती है ?
जिन्दगी के सफर
तन्हा क्यों है ?

कोई नहीं हो तब
दूरियाँ कम क्यों नहीं
होती है?

रूकावट जहाँ हो
कदम रुकने के कारण
क्या हो सकते हैं ?

बन्दिशें जहाँ हो
आप्लावित से मौसम के
रंग|

12 जून 2012

सन्देह न हो

 सन्देह के जोड़ में,
 ताकते रह जाते
 हर समय कहीं
 ठिकानों के साथ में
 कई घुमावदार पंक्तिओं में
 मन सहम जाए
 इन सन्देह के घेरों में
 जहाँ सन्देह न हो |


बातों ही बातों में


बातों-बातों में बीत जाते हैं
समय और हम खोजते हैं
उनमें बातों को, जहाँ हम
तन्हाई महसूस करते हैं

इन पलों में हम
समेटना चाहते हैं
अपने आप को,
जहाँ तन्हाई हमसे दूर
भाग जाये,
फिर से इक नई उमंग
लौट आये इन तनहाइयों
में हर समय,

यादों के इन तनहाइयों में
हम भी कहीं न कहीं कतार
में नजर आये ऐसा आस
मन में संजो रखता हूँ|

अकेला

अकेला निराश

बातें जब दो बैठते हैं

तीसरा जब मिल जाता हैं

चौथा जब बातों में शामिल हो जाता है

जब बातों का सिलसिला जारी रहता है

तभी हंसी छलक सी जाती है बातों में

बातों ही बातों में न जाने क्या-क्या बात होती है।

10 जून 2012

सुकून के पल

सुकून के पल बीतते हैं,
इन मदमस्त पर्वतों ,नदियों व लहलहाते टहनियों के साथ,
जहाँ हवायें मन स्थिर, हृदय कोमल व मस्तिश्क शान्त करा देते हैं 
व्यतीत होते हैं सुकून के पल |

9 जून 2012

आस

कैलाश पर्वत |
 बादलों के घनेरे साये
 कहीं मन सहम जाए
 उजले गर्मी में मन
 कहीं सहम ठहर जाए
 किसी छोर से बुलावा
 आज भी हो, दिल की
 कसक यूँ ही जगी रहे ।

अस्तित्व

 अस्तित्व जहाँ कायम रहे
 सोचता हूँ , खोजता हूँ
 सोये हुए अस्मिता को
 जाग जाये
 जहाँ से खोकर हम
 पकड़ना चाहते हैं
 नयी अस्मिता ।

8 जून 2012

बातों में मुस्कराना

 मुझे मालूम है
 कि दरवाजे के भीतर
 कभी मुस्कराते हुये
 बातों  में यूँ ही दिन
 बीत जाते हैं 
 एक कसक मन के
 भीतर हर समय उठता
 बातों ही बातों में
 मुस्कराने के पल 
 जहाँ कभी ये मुस्कराने
 के ये पल दुबर न हो जाये। 
  


अतीत आगम

 अतीत के पन्ने
 जो अभी भी आगम
 हो जाते हैं
 कहीं किसी रूप
 को लिए

 सहमे से माकूल
 सहम से जाते हैं
 भविष्य को आंकने
 के लिए

 कलम जब कागज
 पर उतराने, आगम होने
 सही मायनों के संग

 फिर भी भयवश
 कलम कागज के
 पन्नों को पलट देता
 अतीत को आगम कर
 लेता है।




 



7 जून 2012

रात के बाद

 रात अकेला 
 न जाने किताबें 
 किस ओर हैं

 हवाएं बादलों के
 संग न जाने धूप 
 किस ओर हैं। 

 अँधेरी रात 
 बादलों का साया 
 बाकि है 

 आंधियाँ चले 
 बर्फ के संग
 बादलों के संग 

 बादल घनेरे 
 बिन बरसात 
 मंजिल कहाँ

 नाचते  पंछी 
 बरसात संग 
 उमड़ते मौसम संग

 धूप  खिलती  
 रात के बाद
 बरसात के बाद

 आइना टूट
 सा जाता  है
 जैसे ही बिखरते 
 
 नींद न आये
 शोर मचाये
 राहगीर

 बसंत  
 आगमन 
 जलध धरा हरा । 

  
   

तलाश में यादें

                          
 जब कभी भी देखा है
 तलाश  में यादों 
 के संग यूँ ही
 जाते हैं अहसास 
 के साथ कहीं 
 रुकावटें तो कहीं 
 हवाएं चलती है
 सुदूर  क्षेत्रों में
 कहीं भोर होते
 अस्त  होते
 जब से देखा है 
 नम आँखों से
 ओझल  होते 
 कहीं  रोते
 कभी मुस्कुराते
 कहीं हँसते 
 कभी घूरते 
 कहीं उलझे
 कभी बदलते 
 कहीं बोझिल
 दिखाई देते हैं।


6 जून 2012

तन्हाई

 न जाने मन क्यों 
उदास हो  जाता है 
कभी हम मुस्कुराते 
तो कभी तन्हाई पीछा 
नहीं  छोड़ता  है ।

कभी उजियारा तो कहीं 
अँधेरा हमें छोड़  जाता है 
कहीं सन्नाटा कहीं भीड़ 
उभरता है ।

चलते- चलते



 चलते हुये यूँ ही
 भाँप लेता हूँ
 सड़क के किनारे
 राहगीर

 क्या मंशा है
 हंसी झलकते हुए
 और सिमट जाते हैं
 दोबारा वहीँ कागज
 के पन्नों पर 

 तराशते हुए 
 अपना वजूद कहीं
 सिमट कर रह न जाए
 पन्नों को समेट कर
 अपने साथ चलते-चलते। 

घूम रहा हूँ

  हाइकु

घूम रहा हूँ
 आज भी शहर
 दर शहर

 आईने जहाँ
 दर्पण के रंग
 रूप लिये हो

 ख़ामोशी के साये
 उदासी  लिये
 फिर रहा हूँ

 घूम रहा हूँ
 मित्रों के चारों
 ओर बंदिश में

 घूम रहा हूँ
 बनते बिगड़ते
 रिश्तों की डोर ।

3 जून 2012

सतत परख

 हर समय कहीं
 न कहीं दूसरों के 
 सहारे निर्भर रहना 
 पड़ता है

 किसी  से क्लेश 
 करना नहीं सुहाता 
 है फिर भी हर क्षण
 हमें सबल परख की
 ओर दिशा बढ़ाना
 पड़ रहा है  

 किसी के साथ 
 बातचीत करना 
 सुनना, कहना
 साथ चलना सहज 
 रूप से सुहाता है

 हमें प्रत्येक क्षण
 उलझन में फसे रहना 
 सहज नहीं सुहाता है

 उलझन  हमें 
 किसी के सहारे 
 सतत परख की ओर
 अग्रसर कराते हैं 

 किसी  पर निर्भर रहना 
 हमें  सुहाता भी है 
 कभी क्लेश का रूप 
 धारण करना नहीं 
 सुहाता  है
 भूली  बिसरी 
 पंक्तियों में हम 
 सहम से जाते है 
 परख की ओर 

 सतत परख के
 मायने
 साथ में रहकर भी 
 उजियाले के लिए
 जंजालों 
 में सतत परख
 की ओर ले चलते हुए
 जो  हमें सहज सुहाता हैं |




27 मई 2012

चाहत

जिंदगी में हम 
वही चाहते हैं 
जो हमें नहीं मिलता है 

लेकिन हम भी 
वही मांगते हैं 
जो हमें बड़ी मुश्किल
से मिलता है 
  
तलाश में यादों के संग
हम यूं ही चलते गए
अहसास इस बात का 
कि हम मुस्कराते रहें 

कहीं हमें रुकावटें तो
कहीं हवायें रोक लेती हैं 
जहाँ  हम स्थिर हैं 
हमेशा स्वयं को 
दूसरों से अलग देखना 
उदासी है जो चाहत में 
बदल जाता  है ।

23 मई 2012

अविस्मृत पल

वादियाँ
 कल जहाँ से गुजरा हूँ 
 सब कुछ विस्मृत सी है 
 पलकें  झपकते हुये
 चला जाता हूँ

 आज फिर से वहीँ 
 ठंडी हवाओं के झोकों
 संग कुछेक अविस्मृत 
 पलों के संग टहलते हुये
 यादों के संग चला जाता हूँ

 सब  कुछ नया
 सा दिखाई देता है
 जहाँ हर बात नयी सी है
 एक  नयी सोच  नयी
 उमंगों के संग चला जाता हूँ

 पथराये हुये सा विस्मृत
 पलों के संग वादियों में
 टहलते हुये चला जाता हूँ ।




22 मई 2012

जहाँ अनुभव हो

अहसास जहाँ 
बनते हैं जब बताते हैं

जहाँ  इर्द-गिर्द 
बनाते हैं छलकते हैं 

कभी अँधेरे व् 
कभी उजाले का अनुभव

जहाँ बिसारते हैं
हर क्षण बनते बनाते हैं 

परख , समझ जहाँ
पहचान बनाते हैं

जहाँ अपना परख
समझ के आस पास 
गुजरते  हैं

तभी  अहसास अनुभव
में बदल जाते हैं ।

21 मई 2012

सामना मुश्किलों का

अभी सोचने से 
हकीकत भी है
सामना मुश्किलों का

पनपते हैं नये सवाल
छलकते हैं रुदन

हँसी जब रुक सी  
जाती है

कदम जहाँ बमुश्किल
से बढते हैं

क्रोध जो तीव्र
बना लेता है

जब  अलग हो
ध्यान हट सा जाता है

आंसू जहाँ
बारिश का रूप
ले लेती  है

डर  जब हमें
हर क्षण सताता है

दर्द  जब उभरकर
थमता नहीं है

कार्य  जब
कभी दुश्कर
हो जाते हैं

सामना जब
हकीकत
बन जाता है

रंग  रूप छलक
जाता है रंगों राग सा
सामनाओं के संग  |

20 मई 2012

अहसास

 अकेल में
 बैठे-बिठाये
 विचारों में खो
 जाना और कोई
 हल नहीं निकल पाना

 नये सोच की
 ओर नया सफर
 हर चीज नयी सी
 धूप छाँव के संग
 बदलने के लिये कुछ
 सोच विचारों के
 मंथन से 

 सोचते हुये कोई
 हल नहीं निकल
 पाना उदासी का
 सबसे बड़ा कारण
 बन जाता है

 मन का स्वभाव
 यूँ ही हलचल
 सा मचा जाता है  |

11 मई 2012

जहाँ माहौल हो

हम जब अपने
और दूसरों के
बारे में कहते हैं
तभी एक अलग सा
माहौल बन जाता है 
थमती है सांसे

जब अलग सा
माहौल पनपता है
जब  मित्र मौसम की
तरह बदल जाते हैं

जहाँ  थमते हुए
दिखाई नहीं देती
जिंदगी की यह सफर ।



हकीकतें

 मैं
जब भी सोचता हूँ

कि कितना अलग
सा लगता है
हकीकत से हटना
ओर  सामना करना

कहीं नया रंग रूप
नजर नहीं आता है
बदला  बदला धुंधलापन
बादल सा नजर आता है
जहाँ बदलना हकीकत
सा बन जाता है

मैं  समझ नहीं पाता
कि वहाँ कौन खड़ा है
मझधार में

जहाँ हम
एक दूसरे से अपने को
रूबरू होते हुये देखते
हैं सफर में जाने
पहचाने ।


व्याकुलता

मुझे
ऐसा लगता है 
कितनी व्याकुलता  है 
कितनी निरीहता है 

कल जिसके लिए 
 व्याकुलता थी 
सोच कर भी 
नहीं समझ पाता हूँ 

इस व्याकुलता के
हल  नहीं निकल
 पाते
जहाँ निरीहता 
दूर्दता, भयानक 
से  लगते हैं 

कहीं असमंजसता 
तो कहीं व्याकुलता
उभरते हैं ।

निरीह


27 मार्च 2012

मंडराते हैं


हर समय मंडराते ही
मेरे आस पास एक
नये  चक्र की ओर
सामने झलकने में
शायद परेशानी का
सबब  हो

प्रत्येक समय चाह कर
भी नजदीक आने में
कतराते हैं शायद उनको
परेशानी का सबब हो

एक नया पहल
झलकता है
जहाँ से हम गुजरते हैं
एक नया सा पहल है 
जो ठोस सा पहल है

प्रत्येक समय
कहीं न कहीं
उलझन हमारे प्रत्यक्ष
व इर्द गिर्द दिखाई देता है

4 मार्च 2012

जहाँ राग है |

हम जब राहे कदम पर चलते ,तभी नया रंग राग उभरता
हर कदम अपने आप में, एक नया रूप रंग लिए हुये
जहाँ उनके और अपने कदम पे चलता है रंग राग
जहाँ प्रत्येक समय  बदलते हैं , दुनिया के नये राग रंग



3 मार्च 2012

दोस्ती का राग

दोस्ती का राग
 समयानुसार बदलते रहता है
हम चाह कर भी इस राह से हट नहीं जाते
हर कोई नये फिराक में रहता है
हर किसी का भाग्य बदल जाता है
अगर सही रास्ते पर चले तभी
दोस्ती का राग एक अलग
रिश्ते में परिवर्तित हो जाता है
इसी राग से बनते और बिगड जाते हैं
प्रत्येक आदमी अपने आप को ऊँचाइयों
पर स्थापित करने की फिराक में रहता है ।

21 फ़रवरी 2012

मौसम के करवटें

मौसम के करवटों से नये-नये रंग
 बदलते हुए दिखाई देते हैं
कल जो भयानक दृश्य
 मुझे मानसिक पटल
 पर दिखाई दे उसे दोहराना
  नहीं चाहता हूँ
 फिर  भी  विवशतावश  इस
 स्थिति से गुजरना पड रहा है 
हर समय एक ही  स्थिति
 से गुजरना पड रहा है
अपने कार्य के लिए दूसरों पर
 निर्भर रहना नई बात नहीं है
 कुछ नया कर पाने के लिए
उत्सुक तो रहता है
 मौसम के करवटों से निपटते
 हुये मन में डर सा बैठ जाता है
फिर भी कुछ नया कर गुजरने
की क्षमता रखना एक विचार उत्पन्न होता है |

20 फ़रवरी 2012

अलग बात तो नहीं है |

आज कुछ अलग बात है
जो कल तक साथ
रहा आज अलग है

मिलने के लिए
 कुछ अलग  बात नहीं है
हर बात  नयी नहीं है
 ऐसा  मुझको लगता है

काफी समय के बाद फिर
उसी में बढ़ना है  मुझे ऐसा
लगता है

एक नये फिराक के लिए
उत्सुकतावश चलना पड़े
तभी हर तरफ सब कुछ
अलग बात तो नहीं है |

19 फ़रवरी 2012

इस कधर कभी न हो |

इस कधर कभी भी न हो
कहीं नया सवेरा हो
कहीं नयी कसक हो
नयी बयार हो

नयी मंजिल हो
ओर एक नया ख्याल हो
कहीं कोई कदम हो

जीवन की कोई डगर हो
किसी से कोई परेशानी न हो
हर तरफ एक नया बयार हो

हमें न कोई टोके न कोई रोके
कोई किसी की रपट न करें
इसी में एक नया बयार हो  ।
 

आखिर लक्ष्य में बाधाएँ न हो |

आखिर लक्ष्य में बाधाएँ न हो
तो कुछ  न कर गुजरने का
 मलाल सभी  को  रहता  है

काफी समय से एक
 ही आसन पर बैठकर
नित सवेर सोचता हूँ की
आखिर क्यों नई सोच की ओर
 मन अग्रसर करता है

जिसे हमने काफी समय से
हासिल करने का सोचा था
उसे न जाने क्यों हटाया जाता है
कभी समृतियों में उजासपन सा
छा जाता है

फिर भी मनुष्य इस आस में
सबल रहता है कि कहीं नया सवेर
इंतजारी में होगा

इसी में शायद नया सवेरा
 निश्चित सा लगता है
हर किसी के रूकावट से
कभी मन उजास सा हो जाता है

लक्ष्य की ओर बढ़ना
 ही एक नया सवेरा है
आखिर बाधाएँ न हो

काफी  समय से बाधाएं
उत्पन्न होने का मलाल
हमेशा से ही मुझे खटकता है

अगर न हो बाधाएं तो हमेशा
अपने लक्ष्य की ओर बढ़ सकता है
न जाने अगला दयार क्या होगा ।




      

30 जनवरी 2012

जहां मन के विचार उभरते हैं

जहां मन के  विचार उभरते हैं

न जाने चाय की चुस्कियों के साथ
मेरे मन में अनेक तरह के विचार
एवं  मेरे इर्द गिर्द जमावड़ा 
सा प्रकट हो जाता है

कभी मन में अनेक तरह
के विचार उत्पन्न होते हैं
उन जमावडों में सांसे
सिसक सी जाती है

प्रतिबिम्ब देखकर एक
अलग सा माहौल प्रकट होता है
एक नए सोच और कार्य के लिए
मन में नया ख्याल प्रकट होता है

लेकिन जाने अनजाने में 
इन सब से उभरना
मुश्किल सा प्रतीत होता है ।

29 जनवरी 2012

हर कदम नया है |

हर कदम पर नया है,जिसमे चलना मुश्किल सा है 
परछाईयों के सहारे चलना है,एक नया सा प्रतिबिम्ब है 

हर  समय कुछ नया सा लगता है, हर  कदम एक नया सामना है 
कभी  मन चंचल हो जाता है, कभी कदम रुक से जाते हैं 

दिशा  यूँ ही  हट सा  जाता है, सोच  समझकर
भी आदमी अपने नया  कदम नहीं बढ़ा पाता है ।















जिंदगी की राह मुश्किलों का सामना है |

कभी जिंदगी की राह 
मुश्किल सा  नजर आता है 
क्योंकि  कहीं नये 
परिवेश में जीना पड़ता है 
कहीं हम दोस्तों से
अलग हो जाते हैं 
कहीं रुकते हैं कदम
तो कहीं अकेलापन
नजर आता है 
कहीं हम अलग थलग
से महसूस हो जाते है
हम चाह कर भी नहीं
बढ़ा सकते कदम
क्योंकि रुकावटें हमे
रोक लगा देते है ।



8 जनवरी 2012

लगाव: जैसे ही कदम बढ़ाते हैं

लगाव: जैसे ही कदम बढ़ाते हैं: नयी उमंगें नया जोश नए साल में नयी बहार नयी उमंग भरता है इस बहार में नया रुखसार नए फ़िराक में बदलते हुए कभी इस डगर कभी उस डगर दिलकश अ...

7 जनवरी 2012

जैसे ही कदम बढ़ाते हैं

नयी उमंगें नया जोश
नए साल में
नयी बहार नयी उमंग
भरता है इस बहार में

नया रुखसार नए फ़िराक में
बदलते हुए कभी इस डगर
कभी उस डगर दिलकश
अंदाज में

बर्फ की नयी फुआरें
सिसक लेती सांसों को
कहीं रुकते हैं कदम तो
कहीं फिर से बढ़ते है उमंग
कहीं रुकते है कदम