30 अगस्त 2012

ख़ामोशी

  मुश्किल में सफ़र
  रात की ख़ामोशी और
  दिन के उजियारे में
  वीरान से जिन्दगी का सफ़र
  दिल की हंसी, मन के साथ
  मन की बात दिल के साथ |

28 अगस्त 2012

उजाले का अहसास

उजाले में भी अँधेरे
का अहसास होने लगा है
जहाँ परम्परायें करते हैं
रुढियों का पालन
सदियों पुरानी सभ्यता
पर जीने लगा है मानव
कैसे मिटेगा अँधियारा
कब होगा उजाले का दीदार
निर्दोषों को कर विवश
चिथड़ों के साये होता
रहा है स्वार्थ का पालन
कब तक चलेगा
उजाले में अंधेरों का स्वार्थ
नियति के नियमों को रखकर
ताक पर जीने को विवश है
बनावटी परिवेश में।

एक ख्वाब

जिन्दगी एक ख्वाबों की हकीकत है,
अगर न हो वैर तो तक़दीर संवर जाती है,
वक्त साथ दे, तो सब कुछ बदल जाता है |

दबिश

आसान लगता है
पैरों के तले दबाना
लेकिन वो क्या जाने
घुटन क्या चीज है
कभी महसूस करके देखो
कि घुटन का स्वाद कैसा है
चींटी का खरोंच भी काफी है
विशालकाय जीवनी काफी को
मूर्छित करने के लिये
आसान लगता है पैरों तले दबाना |

27 अगस्त 2012

जिन्दगी के कलेवर

हम गलतियों से

इतने पिछड़ जाते हैं

कि दोबारा उसी राह से

दूर जाने का मन करता है

बार - बार जिंदगी की भागदौड़

में कहीं न कहीं फिसल जाते हैं

कभी दूसरों की गलतियों के कारण

कभी स्वयं के बनाये हुए कलेवरों में

जब कभी भी जिन्दगी के भागडोर व

आपाधापी नुकसान भुगतना पड़ता है।

26 अगस्त 2012

परिस्थिति


 संजो  रखता हूँ
 तुम्हारी यादों को
 किसी भी परिस्थिति

आज जो अलग है
उस दौर से गुजर
रहा हूँ

 शायद, कोई दोस्त है
 तुम्हारा  जिसे छोड़
 नहीं पा रहा हूँ

 परिस्थितियों के
 दौर से गुजर रहा हूँ
 जिन्दगी के थपेड़े

 ऐसे ही हैं दौर जो हमें
 तोड़ देते हैं हरदम
 किसी के सहारे |

25 अगस्त 2012

दिशाओं की ओर


  थमते हुए राह में जब हम राह थामते हैं,
  थमते हुई जिंदगी में सफर चलता रहे, 

  राह में रुकावटें कहीं दिशा मोड़ दे,
  परख बना रहे परीक्षा की दिलोदिमाग में, 

  जिंदगी की राह यूँ ही चलती रहे, 
 जहाँ दिल बिना रुके बसा रहे |

रुढ़िवादी धरा

रुढ़िवादी धरा
आदर्श की कसौटी
तराशती धरा जहाँ हो
स्वर्ग सा नजारा
चारों दिशायें

हतोत्साहित दृश्य
फिर कसक जगाती
मेरे मन में

जहाँ बेरोजगारी से
त्रस्त तृष्णा प्रकृति के
स्वरूप को पलटते

कब सुधरेगी धरा
की सभ्यता
जहाँ व्याप्त अभिशाप, पाप,
कुंठाएं और रूढ़ियाँ
मचाते हृदय में हलचल |

बिसरे पल

इन हरी भरी यादों में कसक तराशता है, फिर से माहौल बने और हम उन में संजीदगी से नये तरीके से रूबरू हो सके, सुदूर आगंतुक की तलाश में बिसरे यादों के संग इन्तजार की घडी समाप्त हो |
 इन हरी भरी यादों में
 कसक तराशता है,
 फिर से माहौल बने
 और हम उन में
 संजीदगी से नये
 तरीके से रूबरू हो सके,
 सुदूर आगंतुक की तलाश में
 बिसरे यादों के संग
 ख़त्म  न हो हरियाली
 इन्तजार की घडी समाप्त हो |

22 अगस्त 2012

जब कभी भी नुकसान होता है

हम गलतियों से 
इतने पिछड़ जाते हैं
कि दोबारा उसी राह से
दूर जाने का मन करता है
बार बार जिंदगी की भागदौड़
में कहीं न कहीं फिसल जाते हैं
कभी दूसरों की गलतियों के कारण
कभी स्वयं के बनाये हुए कलेवरों में
जब कभी भी जिन्दगी के भागडोर व
आपाधापी नुकसान भुगतना पड़ता है।

16 अगस्त 2012

चलने के लिए

जहाँ से शुरू होते हैं
वहीँ पे रुक जाते हैं
चलने के लिए

किसी के आने जाने के
बहाने सोच में फस जाते हैं
परछाइयाँ भी रोक देते हैं
चलने के लिए । 

14 अगस्त 2012

महक खिलते हैं

                                                                          ब्रह्मकमल
   पर्वत शिखर पे
महकते हुए 
  जहाँ खिलते हैं
ब्रह्मकमल
 शीर्ष पे महक 
     शुशोभित होते हैं
       मौसम के आगाज
         सहित सभी के मन
  बहल जाते हैं। 

13 अगस्त 2012

नियमित

बात इतनी  सी जहाँ से शुरू होते हैं,
फिर बात इतनी अन्त से शुरू करते है।

12 अगस्त 2012

जब भी कोई दिनचर्या में हमें देखता है,
तनहाइयों में शान्त से रूह कांप उठते हैं|

पल-पल यादें अक्सर स्वभाव सताने लगती है,
गर कोई साथ दे तो मिठास उभर आता है|

कई बार यादें साथ होने का भ्रम पैदा करते हैं,
गर यादों में उल्लास व उत्साह हो अच्छा लगता है|

10 अगस्त 2012

आईना

कितना सुकूँ मिलता है
जब कोई आईना आवाज देता है
जहाँ आईना आवाज के पहचान दिलाते हैं
और मदहोशी में कहीं खो जाते हैं|

7 अगस्त 2012

नासमझ बनकर

अक्सर हम नासमझ
बनकर बातों- बातों में
गलती कर बैठते हैं

समझ कर भी
नासमझी का नुक्सान
भुगतना पड़ता है

दोस्ती में भूल से
जाते हैं बातों का रस
जिसका खामियाजा
भुगतना सबसे कठिन है

उठते-बैठते जुड़ते हुए
बातों के मोल से घोल में
अक्सर पिछड़ जाते हैं   ।        

3 अगस्त 2012

राहों में

  नज़रों और नए राहों
  के मध्य बात बन जाए
  इन राहों पे
  जहाँ से हम बढ़कर
  चलें उन राहों पे
  इन शान्त माहौल
  के रुखों से सिमट
  कर न रह जाए।    

आयाम

 कितना सघन
 कितना सुखद
 उत्साहित, एकाग्रचित
 सा लगता है

 वहीँ से गुजरना
 अलग थलग से
 जहाँ छोड़कर एक
 नये सफ़र में

 इस सफ़र में
 हर समय कुछ
 रूह और आयाम
 सहित  मंजिलों के साथ।