3 जून 2012

सतत परख

 हर समय कहीं
 न कहीं दूसरों के 
 सहारे निर्भर रहना 
 पड़ता है

 किसी  से क्लेश 
 करना नहीं सुहाता 
 है फिर भी हर क्षण
 हमें सबल परख की
 ओर दिशा बढ़ाना
 पड़ रहा है  

 किसी के साथ 
 बातचीत करना 
 सुनना, कहना
 साथ चलना सहज 
 रूप से सुहाता है

 हमें प्रत्येक क्षण
 उलझन में फसे रहना 
 सहज नहीं सुहाता है

 उलझन  हमें 
 किसी के सहारे 
 सतत परख की ओर
 अग्रसर कराते हैं 

 किसी  पर निर्भर रहना 
 हमें  सुहाता भी है 
 कभी क्लेश का रूप 
 धारण करना नहीं 
 सुहाता  है
 भूली  बिसरी 
 पंक्तियों में हम 
 सहम से जाते है 
 परख की ओर 

 सतत परख के
 मायने
 साथ में रहकर भी 
 उजियाले के लिए
 जंजालों 
 में सतत परख
 की ओर ले चलते हुए
 जो  हमें सहज सुहाता हैं |