8 जून 2012

बातों में मुस्कराना

 मुझे मालूम है
 कि दरवाजे के भीतर
 कभी मुस्कराते हुये
 बातों  में यूँ ही दिन
 बीत जाते हैं 
 एक कसक मन के
 भीतर हर समय उठता
 बातों ही बातों में
 मुस्कराने के पल 
 जहाँ कभी ये मुस्कराने
 के ये पल दुबर न हो जाये। 
  


अतीत आगम

 अतीत के पन्ने
 जो अभी भी आगम
 हो जाते हैं
 कहीं किसी रूप
 को लिए

 सहमे से माकूल
 सहम से जाते हैं
 भविष्य को आंकने
 के लिए

 कलम जब कागज
 पर उतराने, आगम होने
 सही मायनों के संग

 फिर भी भयवश
 कलम कागज के
 पन्नों को पलट देता
 अतीत को आगम कर
 लेता है।