3 अगस्त 2012

राहों में

  नज़रों और नए राहों
  के मध्य बात बन जाए
  इन राहों पे
  जहाँ से हम बढ़कर
  चलें उन राहों पे
  इन शान्त माहौल
  के रुखों से सिमट
  कर न रह जाए।    

आयाम

 कितना सघन
 कितना सुखद
 उत्साहित, एकाग्रचित
 सा लगता है

 वहीँ से गुजरना
 अलग थलग से
 जहाँ छोड़कर एक
 नये सफ़र में

 इस सफ़र में
 हर समय कुछ
 रूह और आयाम
 सहित  मंजिलों के साथ।