19 जून 2012

व्यंग्

दिन भर घूमकर जब कोई लौटता,
और एक के बाद एक व्यंग करता|

लगता है वो भी व्यंग सुनकर लौटता,
बरबस चोट खाये हुए पलकें झपक कर हो|

अरे मित्रों

अरे मित्रों !
क्यूँ इतने उदास हो
हाले दिल तो बयाँ कीजिए

हम भी आपके
हाले राह पे खड़े हैं
इंतजार काफी हुआ है

जरा हमें भी गौर फरमाइये
इन मदमस्त कंटीले राहगीर
के तले जहाँ सुकून हो, हाले
दिल बयाँ करने का |

नोकजोंक

एक झूठ जो कभी
यहाँ-वहां फिरता है
चलता, फिरता जो
झुकता नहीं कभी
झूठ की आन लिए
फिरता है


न जाने आज यहाँ हो
या वहां जिसका कार्य ही झठ
बतलाना यहाँ वहां
फरेबी में घूमता
जिसका कार्य ही
नोंक्जोंक करना रहता
हर समय


आज क्या दिखेगा
इसी में सबकुछ बोलता
नहीं लगता मंशा कुछ
कर गुजरने की


जो हमेशा दूसरों
को दबाने की मंशा में
घूमता, फिरता जिसका
कार्य ही झूठा हो।

दौड

दौड़ जहाँ पाने
खाने के लिए
इन कंटीले राहों
की ओर


होड़ में मकाम,
मंजिलें दौड़ न
होकर हासिल हो


इस सफ़र में
लग  जाते हैं
कंटीले लग जाए


दौड़ने की ललक
संजो कर कहीं
पथिक फिसल न जाए


होश न खोये
पथिक जोश में
खाने, दौड़ने के लिए 
चलता रहे ।