27 मई 2012

चाहत

जिंदगी में हम 
वही चाहते हैं 
जो हमें नहीं मिलता है 

लेकिन हम भी 
वही मांगते हैं 
जो हमें बड़ी मुश्किल
से मिलता है 
  
तलाश में यादों के संग
हम यूं ही चलते गए
अहसास इस बात का 
कि हम मुस्कराते रहें 

कहीं हमें रुकावटें तो
कहीं हवायें रोक लेती हैं 
जहाँ  हम स्थिर हैं 
हमेशा स्वयं को 
दूसरों से अलग देखना 
उदासी है जो चाहत में 
बदल जाता  है ।

23 मई 2012

अविस्मृत पल

वादियाँ
 कल जहाँ से गुजरा हूँ 
 सब कुछ विस्मृत सी है 
 पलकें  झपकते हुये
 चला जाता हूँ

 आज फिर से वहीँ 
 ठंडी हवाओं के झोकों
 संग कुछेक अविस्मृत 
 पलों के संग टहलते हुये
 यादों के संग चला जाता हूँ

 सब  कुछ नया
 सा दिखाई देता है
 जहाँ हर बात नयी सी है
 एक  नयी सोच  नयी
 उमंगों के संग चला जाता हूँ

 पथराये हुये सा विस्मृत
 पलों के संग वादियों में
 टहलते हुये चला जाता हूँ ।




22 मई 2012

जहाँ अनुभव हो

अहसास जहाँ 
बनते हैं जब बताते हैं

जहाँ  इर्द-गिर्द 
बनाते हैं छलकते हैं 

कभी अँधेरे व् 
कभी उजाले का अनुभव

जहाँ बिसारते हैं
हर क्षण बनते बनाते हैं 

परख , समझ जहाँ
पहचान बनाते हैं

जहाँ अपना परख
समझ के आस पास 
गुजरते  हैं

तभी  अहसास अनुभव
में बदल जाते हैं ।

21 मई 2012

सामना मुश्किलों का

अभी सोचने से 
हकीकत भी है
सामना मुश्किलों का

पनपते हैं नये सवाल
छलकते हैं रुदन

हँसी जब रुक सी  
जाती है

कदम जहाँ बमुश्किल
से बढते हैं

क्रोध जो तीव्र
बना लेता है

जब  अलग हो
ध्यान हट सा जाता है

आंसू जहाँ
बारिश का रूप
ले लेती  है

डर  जब हमें
हर क्षण सताता है

दर्द  जब उभरकर
थमता नहीं है

कार्य  जब
कभी दुश्कर
हो जाते हैं

सामना जब
हकीकत
बन जाता है

रंग  रूप छलक
जाता है रंगों राग सा
सामनाओं के संग  |

20 मई 2012

अहसास

 अकेल में
 बैठे-बिठाये
 विचारों में खो
 जाना और कोई
 हल नहीं निकल पाना

 नये सोच की
 ओर नया सफर
 हर चीज नयी सी
 धूप छाँव के संग
 बदलने के लिये कुछ
 सोच विचारों के
 मंथन से 

 सोचते हुये कोई
 हल नहीं निकल
 पाना उदासी का
 सबसे बड़ा कारण
 बन जाता है

 मन का स्वभाव
 यूँ ही हलचल
 सा मचा जाता है  |

11 मई 2012

जहाँ माहौल हो

हम जब अपने
और दूसरों के
बारे में कहते हैं
तभी एक अलग सा
माहौल बन जाता है 
थमती है सांसे

जब अलग सा
माहौल पनपता है
जब  मित्र मौसम की
तरह बदल जाते हैं

जहाँ  थमते हुए
दिखाई नहीं देती
जिंदगी की यह सफर ।



हकीकतें

 मैं
जब भी सोचता हूँ

कि कितना अलग
सा लगता है
हकीकत से हटना
ओर  सामना करना

कहीं नया रंग रूप
नजर नहीं आता है
बदला  बदला धुंधलापन
बादल सा नजर आता है
जहाँ बदलना हकीकत
सा बन जाता है

मैं  समझ नहीं पाता
कि वहाँ कौन खड़ा है
मझधार में

जहाँ हम
एक दूसरे से अपने को
रूबरू होते हुये देखते
हैं सफर में जाने
पहचाने ।


व्याकुलता

मुझे
ऐसा लगता है 
कितनी व्याकुलता  है 
कितनी निरीहता है 

कल जिसके लिए 
 व्याकुलता थी 
सोच कर भी 
नहीं समझ पाता हूँ 

इस व्याकुलता के
हल  नहीं निकल
 पाते
जहाँ निरीहता 
दूर्दता, भयानक 
से  लगते हैं 

कहीं असमंजसता 
तो कहीं व्याकुलता
उभरते हैं ।

निरीह