20 जून 2012

परिवेश

समझकर जब हम
सोचते है कि नया
बहाना कहीं हो

हर समय नये पहल,
रूहों के इन परिवेश
से विरल ही अनवरत

हम ताकते रह जाते
जहाँ से छन्द मुड जाते
विचारों के दिशाओं

कहीं बनते बिगड़ते
सफर के झंझावतों से
बढ़ निकलने के लिये

जहाँ स्तब्द्ध बना रहे
नैया पे मनमाफिक
शान्त रहे विचारों के
कलेवर में चलकर |