20 जून 2013

  •   जारी रखना फिर मुड कर देखो

    आख़िरकार हम कहाँ अलग थलग रह गये ?
     कोई पता ही नहीं चला | चिलचिलाती सूर्य की किरणों में भी हम सिमट कर रह जाते हैं| किसी के पूछने पर की आप इस कदर क्यों हैं| हमने कह दिया हम तो छोड़ गए तुम जारी रखना मुड कर न देखा करो| किसी दिन हमने छोड़ दिया था शायद हो सकता है, कोई परेशानी का सबब बना हो या अफरातफरी के इस भीड़ भरे माहौल में कहीं पिछड़ गये| आखिर रूख क्यों पलट जाती है? हर जगह !
    कहीं न कहीं परेशानी का माहौल बना रहता है| मौसम की तरह!
    मुझे लगता है, परेशानी का सबब यूँ ही नहीं बनता है| कोई न कोई हमारे इर्द-गिर्द उलझन देने या कष्ट के लिए किसी न किसी मतलब से स्वार्थ के फिराक में रहता है| और इस उलझन में में आगे बढना भी किसी पहाड़ को लांघने से कम नहीं लगता है| जारी रखना फिर मुड कर देखना जरूर!


21 मई 2013

दिन अभी बाकि है

पिछली बातें अधूरी है
फिर भी दिन अभी बाकि है

जो भी हमेशा के लिए अधूरा रहा
अगर पूरा हो ये जरूरी है

फिर भी कोई उमंग रखे तो
रफ़्तार में दिन बाकि है

एक लक्ष्य जो मेरे सामने बाधा
बन रही है उमंगों से भर जाये

हर कोशिश में विफलता के बीच
आज भी किसी मंजिल की ओर चलते हैं|
आज यहाँ
कोई नहीं
तलाश है फिर
वहीँ खड़ा रहूँ

कोई जुस्तजू करे
या न करे
फ़रिश्ते कोई मिल जाये तो
ही अच्छा हो जाये

किसी की कोई
परवाह न करे कितना
बुरा लगता होगा

आज फिर भी कहीं
न कहीं आस टिकी
रहती है

कोई जगह हो
फिर भी आसरा रह जाये
तपते गर्मी में ठंडक महसूस रहे |

जिंदगानी सूनी सी लगती है,
जब कभी भी हम किसी के बारे में सोचते है|

जब कोई हमारे पास नहीं होता है,
जिंदगी हसीन होती है जब किसी से मुलाकात होती है|

वीरान से जिंदगी का सफ़र खुशनुमा होता है,
किसी के आहट आने से साँसे थम सी जाती है|

लेकिन आँखें झुक जाती है,
जब कभी किसी से मुलाकात होती है|
माटी जन्म कबीर का
ओर न मिले कोई
जो जन्मे इस युग में
सो ही जाने पीर
कबीर जनमया कुञ्ज का
पाहन पूजे तो ही मिले
जो जन्मे कुल का
सो ही होए कबीर |