11 मई 2012

जहाँ माहौल हो

हम जब अपने
और दूसरों के
बारे में कहते हैं
तभी एक अलग सा
माहौल बन जाता है 
थमती है सांसे

जब अलग सा
माहौल पनपता है
जब  मित्र मौसम की
तरह बदल जाते हैं

जहाँ  थमते हुए
दिखाई नहीं देती
जिंदगी की यह सफर ।



हकीकतें

 मैं
जब भी सोचता हूँ

कि कितना अलग
सा लगता है
हकीकत से हटना
ओर  सामना करना

कहीं नया रंग रूप
नजर नहीं आता है
बदला  बदला धुंधलापन
बादल सा नजर आता है
जहाँ बदलना हकीकत
सा बन जाता है

मैं  समझ नहीं पाता
कि वहाँ कौन खड़ा है
मझधार में

जहाँ हम
एक दूसरे से अपने को
रूबरू होते हुये देखते
हैं सफर में जाने
पहचाने ।


व्याकुलता

मुझे
ऐसा लगता है 
कितनी व्याकुलता  है 
कितनी निरीहता है 

कल जिसके लिए 
 व्याकुलता थी 
सोच कर भी 
नहीं समझ पाता हूँ 

इस व्याकुलता के
हल  नहीं निकल
 पाते
जहाँ निरीहता 
दूर्दता, भयानक 
से  लगते हैं 

कहीं असमंजसता 
तो कहीं व्याकुलता
उभरते हैं ।

निरीह