25 अक्तूबर 2011

संघर्ष

जीने की आस है
जो छोड़ जाता है
बदलने के लिए
एक  नया मंजर है कहीं

अँधेरा छोड़ देता है
कहीं बदलाव की स्थिति
पनपते  हुये नहीं दिखती

इस  संघर्ष में फिर भी
गुजरना  चाहता हूँ
हासिल  करना चाहता हूँ
अपने  मकाम को

 संघर्ष  जो हमें कचोटती है
उसे  छोड़ने के लिए निरंतर
फिर भी लड़ रहा हूँ एक नये
परिवेश  के लिए |










साया जो है

साये कि तरह चलना भी क्या कोई जिंदगानी है
 जिसे अपना समझकर भी साया के साथ गुजरना 
पड़  रहा है कभी यही लम्हे छोटी तो कभी बड़ी लम्बी
लगती है |

बदलते हुये

कितने मुश्किल में समां जाता हूँ बदलते हुये 
आज  भी उसी परिवेश में बदल रहा हूँ
 एक कसक फिर भी साथ है साये जैसे 
बदलता  हूँ बदलते रंगों के साथ साथियों से |







स्थिरता है

पीछा नहीं छोड़ पाता हूँ
स्थिरता स्थिति बनकर रह गया है
आज  जो सोचता हूँ कल के बारे में
हल  नहीं निकल पाता है

पूर्वाभास  के दौर से गुजर रहा हूँ
छोड़  देती है मुझे कुछ यादें
जिसे  समेटकर एक नये मक़ाम
कि  ओर बढ़ाना चाहता हूँ
कहीं  किसी विश्वास के संग

तोडना  चाहता हूँ इस स्थिरता को
एक  नये मक़ाम कि ओर फिर भी
स्थिरता  छोड़ नहीं देता है |












24 अक्तूबर 2011

अंतिम पड़ाव

हर दिन एक सवेरा है 
अंतिम पड़ाव है 
न जाने किस मोड से गुजरे 
वो लम्हें जिसका इंतजार अभी बाकि  है
अंतिम पड़ाव में फिर भी एक आस है
जो एक जागता सवेरा है 
आज कुछ अलग है 
लगता है कि यही अंतिम पड़ाव है
जो कि इस भीड़ में दिखाई देता है 
जहाँ हर कोई शौक से जीता है
वहीँ हमें हर बार मुश्किल में जीना पड़ता है 
सोचता हूँ कहीं कोई अंतिम पड़ाव है 

23 अक्तूबर 2011

समयावधि

मैं जहाँ जाता हूँ वहाँ से हटना पड़ रहा है
चाहे कितनी ही मुश्किल में हो प्रत्येक कार्य  रुक जाता है
विचारों में उलझते हुये नये  सवेरे कि तलाश में
कुछ एक गलतियों के कारण सारा माहौल बिगढ़ जाता है |
हर समय नयापन उलझता है |

10 अक्तूबर 2011

खो जाते हैं

भीड़ में कहीं खो जाते हैं हर बार
भटक जाते हैं अनेक दिशाओं की ओर

न जाने मन क्यूँ इतना  चंचल हो जाता है
इस भीड़ से हटकर दिशाएं हटा लेती है

हर कदम पर हम कहीं खो से जाते हैं
हम सोचकर भी हल नहीं निकल पाते

इस भीड़ भरी दिशाओं में  हरेक से जुड़कर
हमेशा हम कहीं न कहीं खो जाते हैं भीड़ में
   

कदम बढ़ाते हैं

जैसे ही कदम बढ़ाते हैं
अधूरा ख्वाब रोक लेता है
इतनी कसक की कहीं छूट
न जाये और मिल मिलाये
अंधियारे में,
फिर भी कदम बढ़ाते हैं
और थक से जाते हैं
आज अलग है
न जाने कल कैसा होगा
एक नयापन सा है
कदम रखते ही
इस बीच एक असमंजस सा है
 





 

9 अक्तूबर 2011

समायोजित

हम आज भी वहीँ खड़े हैं
जहाँ छोड़ चले थे 
कहीं कोई रोक देता है
तो कहीं हम हट जाते हैं

आज कुछ अलग है 
कल को देखकर 
कोई तोड़ देता है
तो कोई छोड़ देता है
पलक झपकने के लिए |

 

इस तरह भी

हम भूल  जाते हैं
 इस तरह से फिर भी
उन्हीं में खो से जाते है
उब से जाते हैं माहौल
के साथ इन परिवर्तनों में   

4 अक्तूबर 2011

नयी पहचान है

नये परिवेश में हमेशा
एक अलग सा पहचान
प्रतीत होता है

अनुमान सा लगता है
एक नये परिवेश में
सफ़र का, चलना फिरना
यहाँ तक की मित्रों
से वार्तालाप करना

प्रतीत  सा हो गया है
एक नया  परिवेश है
स्थिरता बना रहता है
सफ़र यूँ ही अलग सा है
इस बदलते परिवेश में

कल एक नया सफ़र
आज भी नया सफ़र
बन गया है इस नये
परिवेश में यूँ ही
बदला बदला सा
अनुमान लगता है |



      


2 अक्तूबर 2011

हालात

हालात न जाने क्यूँ
मजबूर  कर देता 
विकट परिस्थितियों में

बढते  हुये कदम को
पीछे हटाना पडता है
कोई ठिकाना न होता 


हम हो जाते हैं हालात 
से मजबूर इस कधर |

अहसास

अहसास इस बात का
कहना चाहता हूँ
अपना कहीं कोई
मिले कह नहीं पाता

कहना चाहता हूँ
जो समझ पाये मुझे
कहूँगा जब कोई
अपना समझे
सिर्फ अहसास
इस बात का कि
कोई समझ पाये |

अपलक दृश्य

सोचता हूँ कदम बढ़ाऊ
सामना करना पडता है
अपलक दृश्यों का
कंटीली  राहों पर
हमेशा अदृश्य संदेशों
के सहारे फिर हट
जाता है बढता कदम


1 अक्तूबर 2011

ठिठुरते हुये मौसम में
कंपकंपाता ठिठुरन
से बढ़ता तनाव
न  जाने कब तक चलेगा
सर्द मौसम के आगोश में
कभी  शरीर को तरोताजा करे
ओर कभी मनमोहक दृश्य
ठंडी हवाएं  और शीतलहर
से ठिठुरता सामान्य जन |