लगाव
अनुभूतियों के विस्मृत-अविस्मृत पल जो कि अबाध गतिविधियों के साथ अग्रसर होता है |
14 दिसंबर 2010
बदलाव
बदलाव
भूल गए संस्कार
जहाँ छोड़ी है
अपनी छाप उजवल
भविष्य की कलपना
करते हुए पालन
करते हैं रुढियों का
कचरों के ढेर को
जलना भी नहीं भाह्ता
आज के शिक्षित
समाज को
हर कोई आज
भुलाने लगा है
खेत खलियान ओर
आँगन के संस्कार
मुकेश नेगी
१५-१२-२०१०
आज फिर से
आज
आज
कुछ सोचा
समझा बैठकर
कुछ कहूं
करूँ
फिर भी
इतनी
कशमकश के बाद
कोई हल
नहीं निकल
पाया
हमेशा इसी
सोच में कि
कभी तो आज
ठीक होगा.
मुकेश नेगी
15 -12-2010.
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